Who destroyed nalanda university। नालंदा विश्वविद्यालय को क्यों और किसके द्वारा जला दिया गया

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बहुत से लोगों का मानना होता है कि हम इतिहास या past से क्या लेना देना परंतु इतिहास हमारे जीवन में आने वाले उन गलतियों को सिखाता है जो हम पास्ट में किये होते हैं,उससे सतर्क होने की सीख देता है।  

  नालंदा विश्वविद्यालय            

प्राचीन काल से ही  भारतवर्ष शिक्षा के क्षेत्र में सबसे आगे हुआ करता था। यहाँ की शिक्षा-प्रणाली पूरे विश्वभर में प्रसिद्ध थी। पाँचवीं शताब्दी  से लेकर 1200 ई के बीच यह शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र हुआ करता था।

➣प्राचीन भारत में तीन प्रमुख विश्वविद्यालय हुआ करता था, जिनमे से एक महान विश्वविद्यालय नालन्दा भी था जो कि अपनी समृद्ध विरासत और ऐतिहासिक महत्व के लिए पूरे विश्व भर में जाना जाता था।

➣ और  इसी वजह से नालंदा विश्वविद्यालय मे शिक्षा प्राप्त करने के लिए लोग तिब्बत, तुर्की, जापान, चीन, इंडोनेशिया, तिब्बत, फारस तथा कोरिया जैसे देशों से आते थे।

➣यहाँ प्रवेश लेने के लिए तीन स्तरों वाली बहुत ही कठिन प्रवेश परीक्षा हुआ करती थी। अत्यंत प्रतिभाशाली छात्र ही इन परीक्षाओं में सफल होकर यहाँ प्रवेश पाते थे। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी यहाँ आकर शिक्षा प्राप्त की थी , और अपने किताब सी-यू- की में अपने यात्रा वृदांत के बारे में बताए हैं। 

➣नालन्दा विश्वविद्यालय भारत देश के बिहार राज्य जिसे उस समय मगध के नाम से जाना जाता था,जिसकी राजधानी पटना है , यहाँ से 95 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व दिशा में ,बिहार  के पास स्थित 12वीं शताब्दी में बख्तियार खिलजी के द्वारा नष्ट कर दिए जाने के बाद आज बस यहाँ पर इसके खंडहर बचे है, जिसे यूनेस्को के द्वारा इसे 15 जुलाई 2016 को विश्व धरोहर स्थल घोषित कर दिया गया है।



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     आइए जानते हैं नालंदा विश्वविद्यालय के इतिहास के बारे में -


    ➣नालन्दा प्राचीनकाल का सबसे प्रसिद्ध बौद्ध महाविहार था। शिक्षा का केंद्र होने के साथ-साथ यह एक बौद्ध तीर्थस्थान भी था। 


    ➣नालन्दा विश्वविद्यालय दुनिया के सबसे पुराने और बेहतरीन आवासीय विश्वविद्यालयों में से एक हुआ करता था। उस समय यहाँ पर करीब 10,000 छात्र और 2000 शिक्षक रहा करते थे। नालंदा विश्वविद्यालय में कई लाख  किताबों से भरा एक विशाल पुस्तकालय, 300 से भी ज्यादा कमरें और सात विशाल कक्ष हुआ करतें थे। इसका भवन 9 मंजिला था,बहुत ही सुंदर और विशाल हुआ करता था, जिसकी वास्तुकला भी अत्याधिक सुंदर थी।

    ➣प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय में एक मुख्य प्रवेश द्वार था बाकी का सारा परिसर चारदीवारी से घिरा हुआ था। परिसर में अनेक स्तूप, मठ और मंदिर थे , इन मंदिर में भगवान बुद्ध की मूर्तियाँ विराजमान हुआ करती थीं। और आज इस सुंदर भवन का बस खंडहर ही बाकी है । जो कि खुदाई के दौरान पाया गया था ।

    ➣नालंदा परिसर की पूर्व दिशा में ''विहार'' या मठ हैं और पश्चिम दिशा में “चिया” या मंदिर हैं। इसके अलावा इस परिसर में एक छोटा संग्रहालय भी है जहां पर खुदाई के दौरान  कई मूल बौद्ध स्तूप, जले हुए चावल का एक नमूना,जिसे आर्किटेक्चर लोगों का मानना है कि स्टोर रूम रहा होगा । हिंदू और बौद्ध कांस्य के सिक्के, टेराकोटा जार आदि का संग्रह प्राप्त हुआ  है। 

    ➣जब यहाँ के विशाल पुस्तकालय में विदेशी आक्रामक खिलजी  के द्वारा आग लगा दी गई थी तो यह किताबें 6 महीने तक जलती रही थीं। 

    ➣टैंग राजवंश के चीनी यात्री ह्वेनसांग के नाम से भी जाना जाता है, इनके अनुसार ‘नालंदा’ का अर्थ होता है कि ‘बिना अंत के दान या उपहार देने वाला’ जबकि एक पुरातत्वविद हीरानंद शास्त्री के अनुसार नालंदा शब्द संस्कृत शब्द से बना है - " नालम + दा " जिसका मतलब कमल रूपी ज्ञान देने वाला। 

    ➣ऐसा माना जाता है की नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना पांचवी शताब्दी में गुप्त वंश के शासक कुमारगुप्त ने की थी.  उस समय नालंदा में मिली मुद्राओं से यही सत्य लगता है और  कुमार गुप्त के उत्तराधिकारियों ने भी इस विश्वविद्यालय को आगे बढ़ाने में सहयोग दिया।

    ➣उन्होंने कई और मठों और मंदिरों का निर्माण करके साम्राज्य का विस्तार किया स्थानीय शासकों जैसे महान सम्राट हर्षवर्द्धन और विदेशी शासक भी इसे दान दिया करते थे। ऐसा माना जाता है कि 24 वें जैन तीर्थंकर- महावीर जैन ने नालंदा में 14 वर्ष बिताईं थी। गौतम बुद्ध खुद कई बार नालंदा आए और यहाँ प्रवास भी किया। प्रसिद्ध ‘बौद्ध सारिपुत्र’ का जन्म भी इसी पवन भूमि में  हुआ था।

     ह्वेनसांग के अनुसान- प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के बौद्ध मठ का दृश्य -

    ➣ह्वेनसांग ने यहाँ के  वातावरण का पूर्ण विस्तृत वर्णन किया है, अपने पुस्तक सी-यू-की में उन्होंने बताया है कि मठ के चारों तरफ के खूबसूरत जलाशय में नीले कमल के फूल खिला करते थे, जगह-जगह कनक की लताएं थी,जो कि लाल फूलों से भरी हुई थी और मठ के बाहर आम के पेड़ हुआ करते थे जो की छाया दिया करते थे। मठ की मीनारें आकाश को छूती थी जिन्हे भिक्षुक अपने कमरों से देखा करतें थे।

    पुस्तकालय:

    ➣चीन का निवासी यिजिंग यहाँ 10 साल रहने के बाद बहुत ही बड़ी संख्या में किताबें अपने साथ वापस ले गया था। इन संस्कृत ग्रंथों की संख्या करीब 400 के आसपास रही होगी। इन किताबों की संख्या से ही महाविद्यालय के पुस्तकालय के विशाल आकार का पता चल जाता है।

    ➣इस पुस्तकालय का नाम धर्मगंज था। प्राचीन तिब्बती स्रोत के हिसाब से नालंदा के चार बड़ी विशाल पुस्तकालय जो कि  नौ मंजिला इमारतें थी जिसमे - धर्मगंगा, रत्नसागर (ज्वेल्स का महासागर), रत्नोदधि (ज्वेल्स का सागर), और रत्नारंजका (गहनो से सजी हुई) हुआ करती थी।

    नालन्दा पुस्तकालय के अवशेष 

    ➣रत्नोदधि नौ मंजिला ऊंची थी और इसमे प्रज्ञापारमिता सूत्र और गुह्यसमाज सहित सबसे पवित्र पांडुलिपियों को रखा गया था। नालंदा में मौजूद किताबों की संख्या सटीक रूप से तो नहीं पता है फिर भी अनुमान के हिसाब से इनकी संख्या लाखों में मानी जाती है।

    ➣इस पुस्तकालय ने न केवल धार्मिक पांडुलिपियां बल्कि व्याकरण, तर्क, साहित्य, ज्योतिष, खगोल विज्ञान और चिकित्सा जैसे विषयों पर अनेकों ग्रंथ भी मौजूद थे। नालंदा पुस्तकालय किताबों को सही तरीके से रखने के लिए अवश्य ही संस्कृत भाषाविद्, पाणिनि द्वारा बनाई गई वर्गीकरण योजना का प्रयोग करता था।

    आक्रमणकारियों द्वारा विध्वंश:

    ➣इस विश्वविद्यालय पर तीन-तीन बार आक्रमण किए गए जिसके बाद दो बार इसे उस समय राज्य करने वाले राजाओं ने फिर से बनवा दिया पर जब तीसरी बार हमला हुआ जो कि अब तक का सबसे बड़ा और विनाशकारी हमला था।

    ➣इस हमले में यहाँ के पुस्तकालय की काफी सारी किताबें और दुर्लभ ग्रंथ जल गए थे। माना जाता है की इस विश्वविद्यालय के विनाश से ही भारत में बौद्ध धर्म का भी पतन होना शुरू हो गया।

     सबसे पहला हमला:

    ➣इस विश्वविद्यालय पर पहला हमला सम्राट स्कंदगुप्त के समय में 455-467 ईस्वी में हुआ था। यह हमला मिहिरकुल के तहत ह्यून की वजह से हुआ था। इस हमले में विश्वविद्यालय की इमारत के सात-साथ पुस्तकालय को भी काफी नुकसान पहुँचा था। बाद में स्कंदगुप्त के उत्तराधिकारीयों के द्वारा पुस्तकालय की मरम्मत करवा दी गई और एक नई बड़ी इमारत बनवा दी गई।

    दूसरा हमला:

    ➣इस विश्वविद्यालय पर दूसरा हमला 7वीं शताब्दी की शुरुआत में गौदास ने किया था। उस समय बौद्ध राजा हर्षवर्धन का शासन हुआ करता था। 606-648 ईस्वी में उन्होंने इस विश्वविद्यालय की मरम्मत करवाई थी।


    तीसरा और सबसे विनाशकारी हमला:

    ➣इस विनाशकारी हमले के समय यहाँ पल राजवंश का राज्य हुआ करता था। मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी, जो की एक तुर्क सेनापति था, उस समय अवध में तैनात था। इख्तियारुद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी और उसकी सेना ने लगभग 12 वीं शताब्दी के अंत  में, प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया था।

    ➣उसने पुस्तकालय की किताबों को आग लगा दी। जो कुछ भी वहाँ था उसे लूट लिया विश्वविद्यालय में रह रहे हजारों भिक्षुओं और विद्वानों को इसलिए जला कर मार दिया क्योंकि वह इस्लाम धर्म का प्रचार प्रसार करना चाहता था और उसे बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार से चिढ़ थी। इन बातों का जिक्र फारसी इतिहासकार ‘मिनहाजुद्दीन सिराज’ द्वारा लिखी गई किताब ‘तबाकत-ए-नासिरी’ में मिलता है ।

    खिलजी का नालंदा विश्वविद्यालय को जलाने के पीछे कहानी-

    ➣खिलजी के द्वारा नालंदा के पुस्तकालय को जलाने के पीछे एक कहानी प्रसिद्ध है। कहा जाता है की खिलजी एक बार बुरी तरह से बीमार पड़ गया था। और सबने उसे नालंदा विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध वैद्य आचार्य राहुल श्रीभद्र जी से इलाज करवाने के लिए कहा पर खिलजी नही मान रहे थे,परंतु अंत में तबीयत और बिगड़ जाने के कारण आचार्य राहुल श्रीभद्र जी को बुलाया गया ।

    तभी खिजली, आचार्य राहुल जी के सामने एक शर्त रखा और, बोला की मुझे तुम्हारे ये बौद्ध धर्म पर और न ही आयुर्वेद पर किसी पर भी भरोसा नही है । इसीलिए कुछ ऐसा तरीका बताओ जो मेरे धर्म से संबंधित हो।

    ➣ तभी वैद्य जी तैयार हो गए और उन्होंने कहा कि आप कुरान के इतने पन्ने पढ़ लीजिए आप ठीक हो जाएंगे और ऐसा ही हुआ।

    ➣धीरे धीरे तबीयत में सुधार होने लगे और ठीक होने लगे ,और बाद में उसको पता चला कि आचार्य जी ने कुरान पर दवाई के लेप लगाए थे ,जिससे उसे पढ़ने के दौरान जब भी खिलजी पन्नों को पलटता तो अपनी जीभ से उँगली को गीला करता था इससे औषधी उसके मुँह मे चली जाती थी । और वह अनजाने मे ही सही औषधी का सेवन करता रहा। 

    ➣ वह इतना गुस्सा हुआ की बाद में  उसने सोचा की इस तरह रहा तो ये भारतीय विद्वान और शिक्षक पूरी दुनिया में मशहूर हो जाएंगे। भारत से बौद्ध धर्म और आयुर्वेद के ज्ञान को मिटाने के लिए उसने नालंदा विश्वविद्यालय और इसके पुस्तकालय में आग लगा दी और हजारों धार्मिक विद्वानों और बौद्ध भिक्षुओं को भी मार डाला।

    पुनरुद्धार:

    ➣1915 में, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इस साइट का अध्ययन किया और 6 मंदिरों और 11 मठों की खुदाई करवाई। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने नालंदा पुरावशेष प्राचीन स्मारक एवं पुरातात्विक स्थल और पुरावशेष अधिनियम 1958 के तहत नालंदा को संरक्षित स्थल घोषित किया है। इस परियोजना के तहत बिना मूल स्वरूप को बदले इसकी देख-रेख और मरम्मत की जाएगी।

    नालंदा शिलालेख: 

    यहाँ खुदाई के दौरान कई शिलालेख पाए गए, जिन्हे अब नालंदा संग्रहालय में संरक्षित कर लिया गया हैं। ये शिलालेख निम्न है:

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    ➣राजा बालादित्य द्वारा बनाए गए मंदिर को यशोवर्मन के एक मंत्री-पुत्र द्वारा मठ में पाया गया 8वीं शताब्दी सी ई में दान किया गया बेसाल्ट स्लैब मठ संख्या 1 में रखा गया है।

    ➣मर्नवर्मन द्वारा बुद्ध की 24.3 मीटर ऊंची (80 फीट) पीतल की प्रतिमा का निर्माण करवाया गया। 7वीं CE, का यह बेसाल्ट स्लैब, सराय टीले में मिला था।

    ➣भिक्षु विपुलमित्र द्वारा एक मठ का निर्माण किया गया था। बारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध का बेसाल्ट स्लैब मठ के ऊपर के स्तर में पाया गया था।

    ➣शैलेन्द्र वंश के सुवर्णद्वीप के राजा बालपुत्रदेवा के द्वारा दान की गई 860 सी ई की तांबे की प्लेट हीरानंद शास्त्री की 1960 में मठ संख्या 1 के एंटिचेम्बर में मिली

    नालंदा विश्वविद्यालय के दर्शनीय स्थल:

    ➣नालंदा अपने समृद्ध और गौरवशाली इतिहास की वजह से पर्यटकों में बहुत ही प्रसिद्ध है। देश-विदेश से पर्यटक इस देखने आते है। बौद्ध धर्म का प्रमुख केंद्र होने की वजह से यह बौद्ध पर्यटन सर्किट में भी विशेष स्थान रखता है। पर्यटकों के लिए यहाँ देखने के लिए बहुत कुछ है। इन प्रसिद्ध स्थलों के बारें में नीचे बताया गया है:

    ह्वेनसांग मेमोरियल हॉल: 

    ➣ह्वेनसांग चीन का एक बौद्ध भिक्षु था जो की सम्राट हर्षवर्धन के शासन में भारत आया था। ह्वेनसांग का बचपन से ही बौद्ध धर्म में बहुत रुझान था इसी कारण मात्र 13 वर्ष की आयु में वह मठाधीश बन गया था। पर बौद्ध धर्म की शिक्षाओं में मतभेद देखकर उसने भारत आकर बौद्ध धर्म को अच्छे से जानने का निर्णय लिया।

    ➣इसके लिए उसने कई विदेशी भाषाएं सीखी जिनमे संस्कृत भी शामिल थी। वह करीब 15 वर्षों तक भारत में रहा। उसने अपनी भारत यात्रा के बारे में अपनी पुस्तक “सी यू की” में लिखा है। वह करीब 2 वर्षों तक नालंदा विश्वविद्यालय में रहा। यहाँ उसे भारतीय नाम मोक्षदेव दिया गया। यहाँ उसने नालंदा विश्वविद्यालय के शीलभद्र से शिक्षा प्राप्त की। वह यहाँ से करीब बौद्ध धर्म 657 संस्कृत पाठ्य अपने साथ लेकर गया था।

    ➣चीन के चआंग में उसने एक अनुवाद केंद्र खोला जिसे अब ज़ियांन कहते है। यहाँ बहुत सारे छात्र आतें हैं। ह्वेनसांग ने बहुत सारे बौद्ध पाठ्यों का चीनी भाषा में अनुवाद किया। जिससे बहुत सारे बौद्ध पाठ्य जो कि किसी कारण वश खो गए थे वे फिर से मिल गए। ह्वेनसांग द्वारा करीब 1330 पाठ्यों का अनुवाद चीनी भाषा में किया गया था। ह्वेनसांग के इन्ही योगदानों की वजह से ह्वेनसांग मेमोरियल हॉल बनवाया गया है जहां पर ह्वेनसांग से जुड़ी वस्तुओं को रखा गया है। इसे हाल हीं मे बनवाया गया है।

    नालंदा मल्टीमीडिया संग्रहालय: 

    ➣नालंदा मल्टीमीडिया संग्रहालय खुदाई वाली जगह के समीप ही है। यह निजी संस्था द्वारा चलाया जाता है। यहाँ पर 3-डी एनीमेशन और अन्य मल्टीमीडिया साधनों के द्वारा नालंदा के इतिहास को दिखाया जाता है

    नालंदा पुरातात्विक संग्रहालय:

    ➣भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा नालंदा पुरातात्विक संग्रहालय को संचालन किया जाता है। यह संग्रहालय 1917 में खोला गया था। यहाँ नालंदा और राजगीर से मिली वस्तुओं को प्रदर्शित किया गया है। विश्वविद्यालय की खुदाई में मिले अवशेषों को इसी पुरातात्विक संग्रहालय में रखा गया है।

    ➣यहाँ पर मौजूद चार दीर्घाओं में केवल 349 वस्तुओं को रखा गया है जबकी खुदाई में 13,463 वस्तुएं मिली थीं। इनमें बुद्ध की टेराकोटा मूर्तियां और प्रथम शताब्दी के दो मर्तबान, तांबे की प्लेट, बारहवीं सदी के जले हुए चावल के दाने, पत्थर पर खुदे अभिलेख, सिक्के, तथा बर्त्तन भी इस संग्रहालय में रखा हुआ है। भगवान बुद्ध की बहुत सारी मूर्तियाँ यहाँ पर देखने को मिल जाएगी।

    ➣नालंदा विपासना केंद्र: यह विपासना केंद्र नालंदा के खंडहरों से केवल 1 किमी दूरी पर एक सुंदर झील के किनारे पर स्थित है। यहाँ पर एक साथ करीब 50 छात्रों के रहने की व्यवस्था है। विपासना भारत की एक प्राचीन तकनीक है, जो मूल रूप से गौतम बुद्ध के द्वारा सिखाई गई थी। विपासना का अर्थ होता है कि “चीजों को उसी तरह से देखा जाए जैसी वे वास्तव में हैं”। यह आत्म-अवलोकन द्वारा आत्म-शुद्धि की एक प्रक्रिया है।

    नव नालंदा महाविहार: 

    ➣भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के सुझाव पर बिहार सरकार ने पुराने नालंदा विश्वविद्यालय की स्मृति में नालंदा के खंडहरों के पास ही 1951 में, एक नया नालंदा महाविहार स्थापित करवाया जो कि पाली और बौद्ध धर्म के लिए एक आधुनिक केंद्र तरह है। महाविहार का वर्तमान परिसर पटना के महानगर से लगभग 100 किलोमीटर दूर, ऐतिहासिक झील इंद्रपुष्कर्णी के दक्षिणी तट पर स्थित है।

    नालंदा अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय: 

    ➣ नालंदा विश्वविद्यालय (जिसे नालंदा अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के रूप में भी जाना जाता है) ,यह एक अंतरराष्ट्रीय और अनुसंधान गहन विश्वविद्यालय है, जो भारत के ऐतिहासिक शहर, बिहार में स्थित है। यह 5 वीं और 12  वीं शताब्दी में प्रसिद्ध नालंदा विश्वविद्यालय के पुनरुद्धार के लिए बनवाया गया है। इसके लिए संसद में एक अधिनियम पारित किया गया था। जिसके तहत इसे संसद द्वारा “राष्ट्रीय महत्व के अंतर्राष्ट्रीय संस्थान” के रूप में नामित किया गया है। 

    ➣2007 के पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में चीन, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया, मलेशिया और वियतनाम सहित एशियाई देशों के साथ ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड ने भी नालंदा विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित करने का प्रस्ताव दिया था। इस विश्वविद्यालय को भारत सरकार की प्रमुख परियोजनाओं में से एक के रूप में देखा जाता है।

    ➣ 1 सितंबर 2014 को अपना पहला शैक्षणिक सत्र शुरू किया। शुरुआत में अस्थायी सुविधाओं के साथ इसे स्थापित किया गया था, पर  इसके 400 एकड़ के विशाल क्षेत्र में फैले आधुनिक तौर-तरीके से बने परिसर के बन के पूरा हो जाने की उम्मीद है। यह परिसर, पूरा होने पर, एशिया में सबसे बड़े विश्वविद्यालयों में एक और भारत में अपनी तरह का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय होगा।

    ➣विश्वविद्यालय के पहले कुलपति नोबेल पुरस्कार (अर्थशास्त्री ) विजेता अमर्त्य सेन थे, उनके बाद सिंगापुर के पूर्व विदेश मंत्री जॉर्ज येओ यहाँ के कुलपति बने। नालंदा विश्वविद्यालय विशेष रूप से एक स्नातक विद्यालय है, जो अभी केवल मास्टर पाठ्यक्रम की पेशकश कर रहा है, पर 2020 से यहाँ धीरे-धीरे क्रमिक चरणों में पीएचडी कार्यक्रम भी शुरू हो रहे हैं।

     


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